पशुओं में लम्पि बीमारी (एल० एस० डी०) के रोकथाम हेतु अनुदेश
लम्पि बीमारी
> तेज बुखार (41 डिग्री सेल्सियस) ।
> आँख एवं नाक से पानी गिरना ।
> पैरों में सूजन।
> पूरे शरीर में, कठोर, चपटे गांठ उभर आना।
>गोभिन पशुओं के गर्भपात ।
> दुधारू गायों में दुग्ध उत्पादन काफी कम।
> पशुओं में वजन घटना, शारीरिक कमजोरी।
✍️रोग
> रोग के विषाणु बीमार पशु के लार, नासिका स्राव, दूध, वीर्य में भारी मात्रा में पाए जाते हैं।
> स्वस्थ पशु के बीमार पशु के सीधे संपर्क में आने से।
> रोग ग्रसित पशु के स्राव से संदूषित चारा पानी खाने से ।
> बछड़ों में रोग ग्रसित पशु के दूध से।
> मच्छरों, काटने वाली मक्खियों, चमोकन/किलनी आदि जैसे खून चूसने वाली कीड़ों के काटने से।
> यह एक विषाणुजनित रोग है जिसका कोई उचित अनुशंसित उपचार नहीं है। > चिकित्सक के परामर्श से लक्षणात्मक उपचार किया जा सकता है।
> बुखार की स्थिति में ज्वरनाशक का प्रयोग ।
> सूजन एवं चर्म रोग की स्थिति में पशु चिकित्सक की सलाह से दवाईयां तथा द्वितीयक जीवाणु संक्रमण को रोकने हेतु ।
3-5 दिनों तक एन्टीबायोटिक दवाईयों का प्रयोग
> घावों को मक्खियों से बचाने हेतु नीम की पत्ती, मेहंदी पत्ती, लहसुन, हल्दी पाउडर को नारियल या सीसेम तेल में लेह
बनाकर घाओं पर लेप का प्रयोग ।
> बीमारी की रोकथाम के लिए टीकाकरण सबसे अच्छा तरीका है। इंडियन इम्युनोलॉजिकल अथवा हेस्टर बायोसाइंस द्वारा निर्मित गॉटपॉक्स टिका पशुओं को बीमारी से बचाने में अत्यंत कारगर है। इस टिके को ३-५ मी ली मात्रा चमड़े में दिए जाने से एक वर्ष तक प्रभावी प्रतिरक्षा प्रदान करता है।
रोग प्रकोप के समय क्या करें,
निकटतम सरकारी पशुचिकित्सा अधिकारी को सूचित करें।
प्रभावित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग करें । प्रभावित पशुओं की आवाजाही को प्रतिबंधित करें ।
रक्त-आश्रित की कीट के काटने से बचने के लिए पशुओं के श्रीर पर कीट निवारक का प्रयोग करें.
• परिवेश और पशु खलिहान की फिनोल (2%/15 मिनट), सोडियम हाइपोक्लोराइट (2-3%), इत्यादि का छिड़काव कर उचित कीटाणुशोधन करें।
बीमार पशुओं की देख-भाल करने वाले व्यक्ति को भी स्वस्थ पशुओं के बाड़े से दूर रहना चाहिए
क्या नहीं करें❌
× सामुहिक चराई के लिए अपने पशुओं को ना भेजें ।
× पशु मेला एवं प्रदर्शनी पर अपने पशुओं को ना भेजें। * पशुओं को पानी पीने के लिए आम स्रोत इससे बीमारी फैल सकती है ।
× प्रभावित क्षेत्र से पशुओं की खरीदी न करें। * मृत पशुओं के शव को खुले में न फेंके, वैज्ञानिक विधि से निस्तारित करें ।
×लंपि रोग का विषाणु मनुष्यों को प्रभावित नहीं करता अतः रोगी पशु के दूध को उबाल कर पीने या रोगी पशु के संपर्क में आने से मनुष्यों में रोग फैलने की कोई आशंका नहीं है।अवांछित अफवाहों से खुद को बचाएं।
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